प्रस्तावना
- सरकार द्वारा अपनाई गई नई आर्थिक नीति का उद्देश्य विश्व बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा में सुधार करना और निर्यात में तीव्र वृध्दि करने का है । नई आर्थिक नीति का दूसरा तत्व विदेशों से सीधा निवेशआकर्षित करना और स्वदेशी निवेश को प्रेरित करना है । इस नीति को सफल बनाने के निए विश्वस्तरीय गुणवता वाली दूरसंचार सेवाएं प्रदान करना जरूरी है।अत: देश में दूरसंचार सेवाओं के विकास को उच्च प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है ।
- नई नीति के उद्देश्य निम्नलिखित होंगे: -
- दूरसंचार नीति का मुख्य केन्द्र बिन्दु होगा - दूरसंचार सबके लिए और सबकी पहुँच के भीतर । इसका अर्थ है मांग पर यथासंभव शीघ्रातिशीघ्र टेलिफोन उपलब्ध करवाने को सुनिश्चित करना। ऐसे किसी भी व्यक्ति को जिसे दूरसंचार सेवाओं की जरूरत हो उसे उचित मूल्यों पर विश्वव्यापी स्तर की टेलीफोन सेवाएं प्राप्त होनी चाहिए
- सभी ग्रामों में सर्वव्यापक सेवा यथाशीघ्र उपलब्ध करवाना एक अन्य उद्देश्य होगा । सर्वव्यापक सेवा से अभिप्राय है कुछ मूलभूत दूरसंचार सेवाएं वहन-योग्य और उचित मूल्यों पर सभी लोगों की पहुँच के भीतर लाने की व्यवस्था करना ।
- दूरसंचार सेवाओं की गुणवत्ता विश्व स्तर की होनी चाहिए । उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करने ,विवाद निपटाने और सार्वजनिक हितों की ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा । ये उद्देश्य उचित मूल्यों पर ग्राहकों की मांग पूरी करने के लिए व्यापक अनुमत्य सीमा तक की सेवाएं प्रदान करेंगी ।
- भारत के आकार और विकास को देखते हुए , यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भारत दूरसंचार उपस्करों के प्रमुख विनिर्माता आधार और प्रमुख निर्यातक के रूप में उभर कर सामने आए ।
- देश की प्रतिरक्षा और सुरक्षा हितों का संरक्षण किया जाएगा ।
- भारत में टेलीफोन घनत्व विश्व के प्रति 100 व्यक्तियों पर 10 की औसत की तुलना में प्रति 100 व्यक्तियों पर लगभग 0.8 है । यह चीन (1.7 ) पाकिस्तान (2 ), मलेशिया (13 ), आदि जैसे एशिया के विकासशील देशों से भी कम है । इस समय करीब 8 मिलियन लाइनें कार्यरत् हैं और 2.5 मिलियन प्रतीक्षा सूची में हैं । देश में कुल 5, 76, 490 गाँवों में से लगभग 1.4 लाख गाँवों में टेलीफोन सुविधा है । शहरी क्षेत्रों में 1 लाख से अधिक सार्वजनिक टेलीफोन हैं ।
- अर्थव्यवस्था में हुई वर्तमान वृध्दि और पुनर्निर्धारित मांग की दृष्टि से आठवीं योजना के लक्ष्यों में निम्नलिखित संशोधन करना जरूरी हैं :-
- 1997 तक मांग पर टेलीफोन उपलब्ध कराए जाने चाहिए ।
- सभी गाँवों को 1997 तक टेलीफोन सुविधा प्रदान कर दिया जाना चाहिए ।
- शहरी क्षेत्रों में 1997 तक प्रत्येक 500 व्यक्तियों को एक सार्वजनिक टेलीफोन प्रदान कर दिया जाना चाहिए ।
- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध सभी मूल्यवर्धित सेवाओं को भारत में शुरू किया जाए ताकि योजनावधि के भीतर अर्थात 1996 तक भारत में दूरसंचार सेवाओं को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों तक पहुँचाया जा सके ।
- ऊपर उल्लिखित दूरसंचार सेवाओं में तेजी से वृध्दि करने के लिए आठवीं योजना में इस क्षेत्र को आवंटित संसाधनों में से निधि की आपूर्ति करने की जरूरत होगी । कुल मांग में ( चालू कनेक्शन + प्रतीक्षा सूचि ) तीन वर्ष की अवधि में 1.4.92 को 7.03 मिलियन से 1.4.94 को 10.5 मिलियन तक लगभग 50 प्रतिशत वृध्दि हुई है । यदि अगले तीन वर्षों तक मांग में इसी प्रकार वृध्दि होती रही तो यह 1.4.97 तक 15.8 मिलियन पहुँच जाएगी । वृध्दि की वास्तविक दर और अधिक बढने की संभावना है क्योंकि अर्थव्यवस्था में और तेज गति से वृध्दि होने की आशा है । इसलिए 1997 तक मांग पर टेलीफोन देने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 7.5 मिलियन के मौजूदा लक्ष्य के मुकाबले आठवीं योजना के दौरान 10 मिलियन कनेक्शन जारी करने की जरूरत होगी । शेष2.5 मिलियन अतिरिक्त लाइनें जारी करने के लिए 1993 - 94 की कीमतों के आधार पर 47 हजार रूपये प्रति लाइन की यूनिट लागत पर 11,750 करोड़ रूपये के अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत होगी । इसमें 4,000 करोड़ रूपये की लागत पर अतिरिक्त ग्रामीण कनेक्शनों के लिए संसाधनों की आवश्यकता अवश्य जोड़ दी जानी चाहिए ।
- मूलत: निर्धारित आठवीं योजना के तुलनात्मक दृष्टि से संतुलित लक्ष्यों के होते हुए भी संसाधनों में 7,500करोड़ रूपये का अन्तर है । संशोधित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 23, 000 कराड़ रूपये से भी अधिक अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत होगी । स्पष्टत: यह कार्य सरकारी वित्त व्यवस्था और आंतरिक संसाधनों को पैदा करने की क्षमता से बाहर है । संसाधन के अन्तर को पाटने के लिए बड़ी मात्रा में निजी क्षेत्र के निवेश और उनके सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी । निजी क्षेत्र द्वारा की गई पहल, आंतरिक संसाधन बढाने और लीजिंग,आस्थगित भुगतान, बी0ओ0टी0, बी0एल0टी0, बी0टी0ओ0 आदि जैसे नवीनतम साधन अपनाकर अतिरिक्त संसाधन पैदा करने के विभागीय प्रयासों की मदद करने में इस्तेमाल की जाएगी |
- देश की दूरसंचार जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से दूरसंचार उपस्कर के विनिर्माण का क्षेत्र उत्तरोतर रूप से लाइसेंस मुक्त कर दिया है । देश में ही आवश्यक हार्डवेयर बनाने के लिए प्रयाप्त क्षमता पहले ही सृजित कर ली गई है । उदाहरण के तौर पर स्विचन उपस्कर बनाने की क्षमता 1993 में 1.7 मिलियन लाइन प्रतिवर्ष बढी है और 1997 तक 3 मिलियन लाइन प्रतिवर्ष बढाने की आशा है । प्रतिवर्ष 8.4 मिलियन यूनिट की गति से टेलीफोन उपकरण बनाने की क्षमता मौजूदा अथवा प्रत्याशित मांग से काफी अधिक है । आठवीं योजना की जरूरतों को पूरा करने के लिए, बेतार टर्मिनल उपस्कर ग्रामीण संचार के लिए मल्टी एक्सेस रेडियो रिले (एम ए आर आर ),
- अन्तर्राष्ट्रीय सुविधावों के बराबर मानक प्राप्त करने की दृष्टि से जुलाई, 1992 में निम्नलिखित सेवाओं के लिए मूल्यवर्धित सेवाओं का उप-क्षेत्र निजी निवेश के लिए खोला गया था : -
- इलेक्ट्रानिक मेल
- वॉयस मेल
- डॉटा सेवाएं
- ऑडियो टेक्स्ट सेवाएं
- वीडियो टेक्स्ट सेवाएं
- वीडियो कनफरेसिंग
- रेडियो पेजिंग
- सेल्यूलर मोबाइल टेलीफोन
- इन सेवाओं में से पहली छ: सेवाओं की लाइसेंस के अध्यधीन गैर विशिष्ट आधार पर चलाने के लिए भारत में पंजीकृत कम्पनियों को अनुमति दी गई है । यह नीति जारी रहेगी । तथापि रेडियो पेजिंग और सेल्यूलर मोबाइल टेलीफोन सेवा के क्षेत्र में प्रचालन करने के लिए जिन कम्पनियों को अनुमति दी जा सकती है उनकी संख्या पर रोक लगाने की दृष्टि से निविदा की प्रणाली के जरिए लाइसेंस मंजूर करने में चयन की एक नीति अपनायी जा रही है । यह नीति भी जारी रहेगी और चयन के लिए निम्नलिखित मानदण्ड लागू किए जाएंगे : -
- कम्पनी का ट्रेक रिकार्ड
- प्रौद्योगिकी की संगतता
- भावी विकास के लिए प्रदान की जा रही प्रौद्योगिकी की उपयोगिता,
- राष्ट्रीय सुरक्षा हितों का संरक्षण,
- हक को अत्यन्त प्रतिस्पर्धात्मक लागत पर बेहतर किस्म की सेवा प्रदान करने की योग्यता,
- दूरसंचार विभाग के लिए आकर्षण वाणिज्यिक शर्तें ।
- लोगों को दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने में दूरसंचार विभाग के प्रयास के संपूरक के तौर पर भारत में पंजीकृत कम्पनियों की आधारभूत टेलीफोन सेवाओं के क्षेत्र में दूरसंचार नेटवर्क के विस्तार में भाग लेने की अनुमति भी होगी । इन कम्पनियों से, शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों के बीच उनके कवरेज में संतुलन बनाए रखने की अपेक्षा की जाएगी । प्रचालन संबंधी उनकी शर्तों में सहमतियुक्त टैरिफ और राजस्व बाँटने संबंधी इन्तजामात भी शामिल होंगे । ऐसी कम्पनियों पर लागू अन्य शर्तें मूल्य वर्धित सेवाओं के लिए ऊपर उल्लिखित शर्तों के समान होंगी ।
- बेसिक और मूल्यवर्धित सेवाओं दोनों के संदर्भ में नई प्रौद्योगिकियों, नई प्रणालियों का मूल्यांकन करने की दृष्टि से सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रायोगिक परियोजनाओं को प्रोत्साहित किया जाएगा ।
- प्रौद्योगिकी और कार्यनीति पहलू :-
दूरसंचार एक महत्वपूर्ण आधारभूत अवसंरचना है । यह प्रौद्योगिकी उन्मुख भी है । अत : यह आवश्यक है कि दूरसंचार के क्षेत्र में नीति का प्रबंध इस प्रकार का हो कि प्रौद्योगिकी का अन्त: प्रवाह आसान हो जाए तथा भारत उद्भूत होने वाली नई प्रौद्योगिकियों का पूरा लाभ उठाने में किसी से पीछे नहीं रहे । दूरसंचार की नीतिगत पहलू भी इतना ही महत्वपूर्ण है जो राष्ट्रीय तथा जनहितों को प्रमाणित करता है । अत: आवश्यक है कि स्वदेशी प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन प्रदान किया जाए और स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास के लिए एक उपयुक्त वित्त पोषण तंत्र की स्थापना की जाए, ताकि भारतीय प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय मांग की पूर्ति कर सके और साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी स्पर्धा कर सके ।
कार्यान्वयन : -
- उपर्युक्त नीति का कार्यान्वयन करने के लिए , उपयुक्त इन्तजामात
- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा एवं संवर्धन, और
- उचित प्रतिस्पर्दा सुनिश्चित करने हेतु किए जाने होंगे ।
उद्देश्य
वर्तमान स्थिति :
संशोधित लक्ष्य
संशोधित लक्ष्यों के लिए संसाधन
हार्डवेयर
ऑप्टिकल फाइबर केबल, भूमिगत केबल आदि बनाने की क्षमताएं भी स्थापित की गई हैं । लक्ष्यों का संशोधन करने से मांग बढेग़ी और अतिरिक्त जरूरत को पूरा करने के लिए क्षमताओं में वृध्दि करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा ।